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इतिहास में आज: 9 अक्टूबर

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9 अक्टूबर 1967 का दिन क्यूबा के क्रांतिकारी चे गेवारा के नाम है. जानिए इतिहास में इस दिन चे गेवारा के साथ क्या हुआ था.
प्रसिद्ध सोशलिस्ट क्रांतिकारी और गुरिल्ला नेता चे गेवारा 39 साल की उम्र में बोलीविया की सेना के हाथों मारे गए थे. अमेरिकी समर्थन प्राप्त बोलीवियाई सेना ने 8 अक्टूबर को गेवारा की गुरिल्ला सेना के साथ लड़ाई के दौरान उन्हें पकड़ लिया. अगले दिन गेवारा को मौत के घाट उतार उनके शरीर को किसी अज्ञात कब्र में गाड़ दिया गया. 1997 में गेवारा के अवशेष बरामद हुए और उसे क्यूबा वापस भेजा गया. क्यूबा में तत्कालीन राष्ट्रपति फिडेल कास्त्रो और हजारों नागरिकों की उपस्थिति में गेवारा के अवशेषों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार किया गया.
मशीनों पर हमले से न्यूनतम वेतन तक
फायदे और नुकसान
18वीं सदी में ब्रिटेन में शुरू हुई औद्योगिक क्रांति दुनिया के लिए तकनीकी प्रगति लेकर आई लेकिन साथ सामाजिक समस्याएं भी. मजदूर औद्योगिक उत्पादन की रीढ़ थे, लेकिन वे मालिकों के शोषण का विरोध कर रहे थे. ब्रिटेन में उन्होंने रोजगार खाते मशीनों को तोड़ना शुरू कर दिया.
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अर्नेस्टो राफाएल गेवारा दे ला सेर्ना का जन्म 1928 में अर्जेंटीना के एक समृद्ध परिवार में हुआ. जब वह ब्यूनेस आयर्स में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे तभी वह दक्षिण अमेरिका में अपनी मोटरसाइकिल से घूमने निकल गए. इस यात्रा में उन्होंने बहुत गरीबी और समाज के निचले तबकों का शोषण होते हुए देखा. 1953 में डॉक्टरी की डिग्री लेने के बाद भी गेवारा ने लैटिन अमेरिका में अपना भ्रमण जारी रखा. इसी दौरान अमेरिका में वह दक्षिणपंथी संगठनों के संपर्क में आए.


दूसरा विश्व युद्ध तस्वीरों में
1939
पहली सितंबर के दिन जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया. पोलैंड के सहयोगियों फ्रांस और ब्रिटेन ने जर्मनी के खिलाफ तीन सितंबर को युद्ध का ऐलान किया.
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1950 के मध्य में मेक्सिको में गेवारा की मुलाकात फिडेल कास्त्रो और उनके समूह के क्रांतिकारियों से हुई. इसके बाद साथ मिलकर गेवारा ने 1959 में क्यूबा में तानाशाह बातिस्ता को हटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. लंबे समय तक गेवारा कास्त्रो के निकट सहयोगी और मंत्री बने रहे. गेवारा लैटिन अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के प्रभुत्व का विरोध करते थे. सामाजिक अन्याय और असमानता से निपटने के लिए वह सर्वहारा वर्ग की क्रांति के पक्षधर थे. 1965 में सरकार से हटने पर गेवारा ने क्यूबा छोड़ दिया. अफ्रीका होते हुए वह बोलीविया पहुंचे, जहां उनकी हत्या कर दी गई. उनकी मौत के बाद गेवारा को दुनिया भर में एक ऐसे क्रांतिकारी नायक का दर्जा मिला जिसने पूंजीवाद के खिलाफ मोर्चा खोला


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